व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> चुभते विचार चुभते विचारसूर्या सिंह
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कोई भी प्रेरक किसी को प्रेरित नहीं कर सकता, कोई भी इंसान किसी की जिंदगी नहीं बदल सकता...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
आज के भागमभाग भरे भौतिकवादी जीवन में जहां हर व्यक्ति एक-दूसरे से
स्वार्थवश जुड़ा है और मानवता खत्म होती जा रही हैं। वहीं हमारे समाज में
युवा पीढ़ी को पुनः एक नई व सही दिशा की जरूरत पड़ी रही है।
ऐसे में मैंने प्रयत्न किया है कि कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत कर सकूं, जो साधारण से साधारण व्यक्ति को भी समझ में आ सके। इस पुस्तक में मेरे विचार मात्र नहीं हैं यह जीवन की ऐसी कड़वी सच्चाईयाँ हैं जो शायद आपको चुभेंगे, शर्मिन्दा करेंगे, चोट पहुंचाएंगे, झंझोडेंगे और कुछ अलग हटकर सोचने पर मजबूर कर देंगे।
समाज को सुधारने व दूसरों को बदलने से पहले हमें जिस चीज को बदलने की जरूरत है, वह हम स्वयं हैं। जब हम यह जान लेते हैं कि स्वयं को बदलना कितना मुश्किल कार्य है तो हम यह भी जान जाते हैं कि दूसरों को बदलना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। कठिन प्रयास करके पहले स्वयं को बदलिए, फिर दूसरों को बदलने की चुनौती स्वीकार कीजिए।
मैं ऐसे अनगिनत सफल लोगो के उदाहरण दे सकता हूं, जो पहले अपने जीवन में हार चुके थे, जिन्हें लोगों ने हारा हुआ घोषित कर दिया था, लोगों ने जिनका मजाक उड़ाया था और जिनका साथ देने से मना कर दिया था। फिर भी धुन के पक्के वे लोग निराश नहीं हुए क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वे एक-न-एक दिन अवश्य सफल होंगे। यही कारण था कि वे सूझ-बूझ के साथ तब तक लगातार प्रयत्न करते रहे, जब तक कि वे सफल नहीं हो गए। वे सभी लोग जो उनका मजाक उड़ाकर अपमान किया करते थे, उनकी सफलता देखकर उनसे मिलने को लालायित हो गए और उनकी जय-जयकार करने लगे।
केवल कठोर परिश्रम करके जीवन को सार्थक नहीं बनाया जा सकता। कारण, कठोर परिश्रम तो गधे भी करते हैं, लेकिन चारे के अलावा उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता। वे बोझ ढोते-ढोते जीते हैं और बोझ ढोते-ढोते मर जाते हैं। अगर आप अपने जीवन व कार्यों को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो सूझ-बूझ के साथ परिश्रम करें। तभी आप सफलता पा सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
अगर आप बहुत-सी सफलताएं पा चुके हैं, तो भी अहंकार न करें। आपकी कामयाबी का सफर खत्म नहीं हुआ है, अभी आपको और भी सफलताएं पानी हैं। अगर आप यह सोचने लगे हैं कि जिस मुकाम पर आप पहुंच चुके हैं, वहां कोई दूसरा नहीं पहुंच सकता, तो यह आपकी जबरदस्त भूल है। साथ ही इसका यह मतलब हुआ कि आप और सफलताएं नहीं चाहते। दोस्तों, सफलता का अर्थ यह नहीं कि एक सफलता पाने के बाद वहीं पर बैठ जाया जाए। सफलता का अर्थ तो यह है कि एक सफलता को पाने के तुरंत बाद दूसरी बड़ी सफलता के लिए प्रयास किया जाए। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। ठीक उसी प्रकार, जैसे पानी ठहर जाए तो गंदा हो जाता है, जीवन ठहर जाए तो धुंधला हो जाता है। वैसे ही सफलता ठहर जाए, तो अतीत बन जाती है।
मैं उन लोगों से मिलना बिल्कुल भी पसंद नहीं करता, जो लोग मुझसे मिलना पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं अपनी पसंद से ज्यादा उनकी पसंद को पसंद करता हूं।
आप भी ऐसा करके देखिए। सुनिश्चित आप अपने पसंदीदा लोगों की पहली पसंद बन जाएंगे।
माँ-बाप होने के नाते अपने बच्चों के प्रति हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने बच्चों को इतना पढ़ाएं-लिखाएं और अच्छे संस्कार सिखाएं कि जब वे बड़े हों, तो अपने सद्गुणों से खुद भी महकें और दूसरों को भी महकाएं।
उनकी सभ्यता, संस्कृति व अच्छे संस्कार देखकर न सिर्फ हमें गर्व महसूस हो, बल्कि हमारे सभी रिश्तेदार, पास-पड़ोस, मोहल्ले और समाज के अन्य लोग भी गर्व से कहें—
देखो, वो फलां का बच्चा जा रहा है। काश ! हमने भी अपने बच्चों को इसके जैसे गुणों और संस्कार की घुट्टी पिलाई होती।
ऐसे में मैंने प्रयत्न किया है कि कुछ ऐसे विचार प्रस्तुत कर सकूं, जो साधारण से साधारण व्यक्ति को भी समझ में आ सके। इस पुस्तक में मेरे विचार मात्र नहीं हैं यह जीवन की ऐसी कड़वी सच्चाईयाँ हैं जो शायद आपको चुभेंगे, शर्मिन्दा करेंगे, चोट पहुंचाएंगे, झंझोडेंगे और कुछ अलग हटकर सोचने पर मजबूर कर देंगे।
समाज को सुधारने व दूसरों को बदलने से पहले हमें जिस चीज को बदलने की जरूरत है, वह हम स्वयं हैं। जब हम यह जान लेते हैं कि स्वयं को बदलना कितना मुश्किल कार्य है तो हम यह भी जान जाते हैं कि दूसरों को बदलना कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है। कठिन प्रयास करके पहले स्वयं को बदलिए, फिर दूसरों को बदलने की चुनौती स्वीकार कीजिए।
मैं ऐसे अनगिनत सफल लोगो के उदाहरण दे सकता हूं, जो पहले अपने जीवन में हार चुके थे, जिन्हें लोगों ने हारा हुआ घोषित कर दिया था, लोगों ने जिनका मजाक उड़ाया था और जिनका साथ देने से मना कर दिया था। फिर भी धुन के पक्के वे लोग निराश नहीं हुए क्योंकि उन्हें विश्वास था कि वे एक-न-एक दिन अवश्य सफल होंगे। यही कारण था कि वे सूझ-बूझ के साथ तब तक लगातार प्रयत्न करते रहे, जब तक कि वे सफल नहीं हो गए। वे सभी लोग जो उनका मजाक उड़ाकर अपमान किया करते थे, उनकी सफलता देखकर उनसे मिलने को लालायित हो गए और उनकी जय-जयकार करने लगे।
केवल कठोर परिश्रम करके जीवन को सार्थक नहीं बनाया जा सकता। कारण, कठोर परिश्रम तो गधे भी करते हैं, लेकिन चारे के अलावा उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होता। वे बोझ ढोते-ढोते जीते हैं और बोझ ढोते-ढोते मर जाते हैं। अगर आप अपने जीवन व कार्यों को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो सूझ-बूझ के साथ परिश्रम करें। तभी आप सफलता पा सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
अगर आप बहुत-सी सफलताएं पा चुके हैं, तो भी अहंकार न करें। आपकी कामयाबी का सफर खत्म नहीं हुआ है, अभी आपको और भी सफलताएं पानी हैं। अगर आप यह सोचने लगे हैं कि जिस मुकाम पर आप पहुंच चुके हैं, वहां कोई दूसरा नहीं पहुंच सकता, तो यह आपकी जबरदस्त भूल है। साथ ही इसका यह मतलब हुआ कि आप और सफलताएं नहीं चाहते। दोस्तों, सफलता का अर्थ यह नहीं कि एक सफलता पाने के बाद वहीं पर बैठ जाया जाए। सफलता का अर्थ तो यह है कि एक सफलता को पाने के तुरंत बाद दूसरी बड़ी सफलता के लिए प्रयास किया जाए। यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। ठीक उसी प्रकार, जैसे पानी ठहर जाए तो गंदा हो जाता है, जीवन ठहर जाए तो धुंधला हो जाता है। वैसे ही सफलता ठहर जाए, तो अतीत बन जाती है।
मैं उन लोगों से मिलना बिल्कुल भी पसंद नहीं करता, जो लोग मुझसे मिलना पसंद नहीं करते, क्योंकि मैं अपनी पसंद से ज्यादा उनकी पसंद को पसंद करता हूं।
आप भी ऐसा करके देखिए। सुनिश्चित आप अपने पसंदीदा लोगों की पहली पसंद बन जाएंगे।
माँ-बाप होने के नाते अपने बच्चों के प्रति हमारा फर्ज बनता है कि हम अपने बच्चों को इतना पढ़ाएं-लिखाएं और अच्छे संस्कार सिखाएं कि जब वे बड़े हों, तो अपने सद्गुणों से खुद भी महकें और दूसरों को भी महकाएं।
उनकी सभ्यता, संस्कृति व अच्छे संस्कार देखकर न सिर्फ हमें गर्व महसूस हो, बल्कि हमारे सभी रिश्तेदार, पास-पड़ोस, मोहल्ले और समाज के अन्य लोग भी गर्व से कहें—
देखो, वो फलां का बच्चा जा रहा है। काश ! हमने भी अपने बच्चों को इसके जैसे गुणों और संस्कार की घुट्टी पिलाई होती।
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